रंगो से भरा किन्नौर : बच्चे बना रहे किन्नौर के पक्षियों की तस्वीरें और कर रहे आपकी कहानियों का आह्वान
- Pramiti Negi
- Aug 4
- 3 min read
Updated: Sep 1
अगली बार जब आप चीड़ के पेड़ों के बीच पंखों की हल्की आवाज़ सुनें या सेब के बगानों में उड़ती रंगीन आकृति देखें, तो दो मिनट ठहर कर सोचिए क्या आप उस पक्षी को पहचानते हैं? या फिर आप सोचेंगे कोई कहानी जो आपको उस पक्षी से जोड़ती हो ? किन्नौर के पक्षियों ने न केवल धरती पर बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहण और व्यक्तिगत यादों में भी अपनी छाप छोड़ी है। लेकिन समय के साथ, ये कहानियां और पक्षी भी बदलती ज़िंदगी और पर्यावरण के कारण पीछे छूट रहे हैं। और सोचिए हमारे बच्चों के लिए इसका क्या मतलब होगा जब हम केवल एक पक्षी नहीं, बल्कि वह कहानी भी खो देते हैं, जिससे हमारी कल्पना में उसे ज़िंदगी मिलती थी?
इसी चिंता ने हमें बच्चों के साथ समय बिताने को प्रेरित किया। हम उनकी बातें सुनते हैं, अपनी बातें साझा करते हैं और खोजते हैं कि कितना कुछ है हमारे पास।

पिछले एक साल में, हमने बच्चों में जिज्ञासा और किन्नौर की पक्षी विविधता के लिए अपनापन जगाने के लिए बर्ड वॉक और रचनात्मक गतिविधियों को बढ़ावा दिया है। इस में हमारे साथ हैं महेश रोंसेरु, जो किन्नौर के पक्षियों को दर्ज करने वाले एक उत्साही बर्डर और संरक्षण कार्यकर्ता हैं। उन्होंने कई दुर्लभ और पहले ना देखे गए पक्षियों को सामने लाया, जैसे यूरेशियन कूट, टफ्टेड डक, ब्राउन एक्सेन्टर, यूरोपियन स्टारलिंग, ब्राह्मणी स्टारलिंग, वॉटर पिपिट, सिनेरियस वल्चर, यूरोपियन विजन और कई अन्य।
बच्चो के साथ हमारी यात्रा को एक नया आकार मिला 'काचा' लॉन्च फेस्ट पर जहां हमारी पत्रिका के नए अंक की पहली झलक के साथ किन्नौर की जैव विविधता और संस्कृति पर महत्वपूर्ण चर्चा एवं गतिविधियां हुई। जिनमे से एक खास गतिविधि थी बच्चों का किन्नौर के पक्षियों पर चित्रकारी सत्र, जहां उन्होंने किन्नौर के पक्षियों की विविधता को अपने तस्वीरों के माध्यम से ज़ाहिर किया।
मेज़ों पर चमकदार चित्र उभर रहे थे, रंग एक हाथ से दुसरे हाथ घूम रहे थे, और सर झुकाये बच्चे ध्यान से अपनी तस्वीरें बना रहे थे। इन रचनाओं में बच्चों का प्रकृति से रिश्ता साफ दिख रहा था।

काचा में हुए इस कार्यक्रम से पहले, हमने तीन स्कूलों - राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय रिकांगपिओ, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कल्पा और लिटिल एंजेल्स पब्लिक स्कूल के बच्चों को आमंत्रित किया था, जो पहले भी हमारे साथ बर्ड वॉक, कहानी और अन्य कार्यशालाओं में भाग ले चुके थे। कार्यक्रम के दौरान हमने किसी भी स्कूल के बच्चों के लिए सेशन खुला रखा, और दूसरी स्कूलों के बच्चों ने भी इसमें भाग लिया।
कुल 21 बच्चों ने अपनी रचनात्मकता से सबको प्रभावित किया, जिनमें से कुछ सिर्फ सात साल के थे।
हिमालयन मोनाल की बारीक तस्वीर से लेकर पक्षियों और इंसानों के बीच काल्पनिक बातचीत तक, बच्चों की ड्राइंग उनके रचनात्मक और भावनात्मक संबंध को दर्शा रही थी। कुछ चित्रों में गांव की कहानियां, पक्षियों के साथ उनकी मुलाकातें, और कहीं संरक्षण की चिंता भी नजर आई।
हर संरचना खास थी और सभी मिलकर दिखाती हैं कि युवा पीढ़ी किन्नौर की प्रकृति और विरासत को कैसे देखती और समझती है। और यह तो बस शुरुआत है।

बच्चों के साथ किए जा रहे ये सत्र हमारे बड़े सपने का हिस्सा हैं—किन्नौर की पहली पक्षी पुस्तक! ग्रीन हब द्वारा दी गयी पश्चिमी हिमालय 2024 संरक्षण ग्रांट से समर्थित इस प्रयास में केवल पक्षियों की लिस्ट नहीं, बल्कि उनकी कहानियां, यादें और जानकारी भी शामिल की जा रही है।
और अगला अध्याय आपके साथ शुरू होता है। अगर आपके पास किसी पक्षी की कोई कहानी है, तो हमारे साथ साझा करें। आपकी कहानी हमारे बर्डबुक को जीवंत बनाएगी और किन्नौर की विरासत सहेजने में मदद करेगी।
हमारे साथ जुड़े स्कूलों के बच्चे अपनी कल्पनाओं को शब्दों और चित्रों में ढाल रहे हैं। आने वाले महीनों में हम बच्चों के साथ बर्ड वॉक, कहानी और कला कार्यशाला करते रहेंगे, जिसमें पुस्तक की मुख्य चित्रकार तनिशा नेगी हमारा साथ देंगी।
अंत में कुछ बच्चों की रचनाएँ किताब में भी शामिल होंगी।
और इस सूचना के माध्यम से हम पूरे किन्नौर के लोगों को इस यात्रा में शामिल होने का निमंत्रण देते हैं। हमारे प्रोजेक्ट का दिल आपकी कहानियों, यादों और पक्षियों के स्थानीय नामों से बना है। हर एक याद और हर एक कल्पना की उड़ान किन्नौर के पक्षियों और विरासत को रंगीन श्रद्धांजलि है।
शब्दों के विराम के साथ हमारे बच्चों की इन अद्भुत कलाओं का आनंद लें। हमें ये याद दिलाने दें कि पर्यावरण के प्रति सच्ची संवेदनशीलता की शुरुआत बच्चों की आवाज़ सुनने, उनके भविष्य की फिक्र से होती है और कभी-कभी, एक रंग-बिरंगे पक्षी की आँखों से इस दुनिया को देखने से भी।




























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